रिपोर्टिंग आनंद गुरब सूरत
सूरत। डायमंड और टेक्सटाइल सिटी के नाम से मशहूर सूरत शहर के लोग अब एडवेंचर में भी आगे बढ़ रहे हैं। हाल ही में एल. पी. सवाणी स्कूल के संचालक धर्मेंद्र भाई सवाणी और उनके साथ जयेशभाई पटेल, राजेशभाई मोर्दिया, शैलेश सवानी, श्रेयांश शाह, स्मितल शाह और जाह्नवी गोहिल ने अति कठिन और चुनौतीपूर्ण एवरेस्ट बेस कैंप को सफलतापूर्वक पूरा किया है।
उनके इस साहस ने फिर एक बार सूरत और गुजरात को गौरवान्वित किया है।धर्मेंद्रभाई सवाणी ने अपनी साहसिक यात्रा के बारे में बताया कि जब उन्होंने जीवन में साहसिक कार्य करने का फैसला किया था। इस बीच एवरेस्ट बेस कैंप के बारे में पता चला और इस इसे सफलतापूर्वक पूरा करने के दृढ़ संकल्प के साथ यात्रा शुरू की। मेरे साथ सूरत से अन्य पांच साथी और एक अहमदाबाद तथा एक ट्रैकर पुणे का था।
हम सब काठमांडू से सड़क मार्ग से रामाचिप पहुंचे। यहां से लुकला के लिए फ्लाइट थी और दूरी महज पंद्रह मिनट की थी, लेकिन खराब मौसम की वजह से फ्लाइट उड़ान भर नहीं सकती थी, ऐसे में घंटों के इंतजार के बाद आखिरकार हम उड़ान भर पाए।
पंद्रह मिनट में लुकला पहुंचने के बाद यहां से हमारी ट्रेकिंग यात्रा बेस कैंप के शुरू होनी थी। पहले से ही अंदाजा था कि कई सफर में कई तरह की चुनौतियां आएंगी। अंत में हम सभी ने ट्रेकिंग शुरू की और दुर्गम पहाड़ी रास्तों पर चलते रहे। रोजाना दस से 12 घंटे की ट्रेकिंग में मुश्किल से 10 से 12 किमी की दूरी तय कर पाते थे।
इतनी दूरी तय करने के बाद रात का ठहराव और सुबह फिर से लक्ष्य की ओर आगे बढ़ना। इस तरह हम 5364 मीटर की दूरी तय कर एवरेस्ट बेस कैंप पहुंचे और जीवन का एक बड़ा साहसिक कार्य सफलतापूर्वक पूरा किया। अपने अनुभव के बारे में धर्मेंद्रभाई सवाणी ने बताया कि उन्हें लगता था कि वे दौड़कर इस दूरी को पूरा कर लेंगे, लेकिन थोड़ा चलने के साथ ही सांसें फूलने लगती। ऊंची पहाड़ियों पर चढ़ते- चढ़ते ठंड में भी पसीना छूट जाता।
इसके बावजूद हिम्मत हारे बिना हमने सिर्फ हमारे लक्ष्य को पूरा नहीं किया, बल्कि उससे भी आगे कालापत्थर तक 5550 मीटर का ट्रेक पूरा किया। धर्मेंद्र भाई आगे कहते है कि इस यात्रा का अनुभव मेरे और मेरे साथियों के लिए जीवन का साहसिक और अविस्मरणीय अनुभव था और रहेगा।-छह महीने पहले से शुरू किया अभ्यास धर्मेंद्रभाई सवाणी ने बताया कि एवरेस्ट बेस कैंप तक ट्रेकिंग पूरा करने का लक्ष्य तय तो कर लिया था, लेकिन इसे हासिल करना आसान नहीं था।
इसके लिए हमने छह महीने पहले से ही अभ्यास शुरू कर दिया था। प्रतिदिन ऊंची-ऊंची इमारतों पर चढ़ने और उतरते थे। साथ ही इस यात्रा के दौरान आहार का भी महत्व होता है, इसे लिए उसी तरह का आहार हम लेते थे। स्वस्थ भोजन और कठोर अभ्यास के परिणामस्वरूप इस साहसिक कार्य को सफलतापूर्वक पूरा करने में हम सफल रहे।